Home मध्य प्रदेश पद्मश्री डॉ. वाकणकर की जयंती पर व्याख्यान-माला का आयोजन, डॉ. वाकणकर के...

पद्मश्री डॉ. वाकणकर की जयंती पर व्याख्यान-माला का आयोजन, डॉ. वाकणकर के योगदान पर हुई चर्चा, चित्रकला प्रदर्शनी भी लगी

13
0
Jeevan Ayurveda

भोपाल
पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर ने न सिर्फ पुरातत्व और चित्रकला के क्षेत्र में ख्याति अर्जित की, बल्कि सम्राट विक्रमादित्य के गौरवशाली शासन काल की विशेषताओं को सामने लाने का कार्य भी किया। यह बात विक्रमादित्य शोध पीठ, उज्जैन के पूर्व निदेशक, पद्मश्री भगवतीलाल राजपुरोहित ने प्रो. वाकणकर की जयंती पर आयेाजित व्याख्यान-माला के अवसर पर कही। यह आयोजन रविवार को डॉ. वाकणकर शोध संस्थान, संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय द्वारा स्टेट म्यूजियम में हुआ। कार्यक्रम में चित्रकला स्पर्धा के विजेताओं को पुरस्कृत भी किया गया।

पद्मश्री प्रो. राजपुरोहित ने कहा कि डॉ. वाकणकर ने पं. सूर्यनारायण व्यास, प्रो. सुमन और अन्य विद्वानों द्वारा सम्राट विक्रमादित्य के योगदान से जन-सामान्य को अवगत करवाने की परम्परा का निर्वहन किया। इस क्रम में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, जिन्होंने वर्ष 2007  से उज्जैन में विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के नाते विक्रमोत्सव का आयोजन प्रारंभ करवाया। उज्जैन में सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य मंचन की शुरूआत और बाद में अनेक प्रदर्शनों की उपलब्धि का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. यादव के प्रयासों से नई दिल्ली में भी महानाट्य के तीन सफल मंचन संपन्न हुए।

Ad

 कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने मध्यप्रदेश के आठवें टाइगर रिजर्व का नामकरण डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर के नाम पर कर उन्हें यथोचित सम्मान दिया है। व्याख्यान-माला में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व अध्ययन शाला के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष प्रो. सीताराम दुबे ने कहा कि प्रत्येक पीढ़ी अतीत के अध्ययन से वर्तमान की समस्याओं का समाधान प्राप्त करती है। डॉ. वाकणकर ने विक्रम संवत् प्रवर्तक सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल की सील (मुद्रांक) को सामने लाकर महत्वपूर्ण शोध का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने भीमबैठका के शैलचित्रों की खोज एवं लुप्त सरस्वती नदी के प्रवाह की गुजरात में खोज कर सैंधव सरस्वती सभ्यता के तथ्य को प्रकाश में लाने का भी कार्य किया। प्रो. दुबे ने अपने उद्बोधन में ब्रिटिश काल से लेकर अब तक इतिहास लेखन की प्रवृत्तियों के संबंध में विस्तार से जानकारी दी। पुरातत्व संचालनालय की ओर से अतिथियों का सम्मान कर उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किए गए।

 

Jeevan Ayurveda Clinic

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here