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जानिए प्रेगनेंसी के दौरान कौन से मेडिकल टेस्ट है जरूरी

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Jeevan Ayurveda

गर्भधारण के दौरान समय-समय पर कई तरह की जांच की जाती हैं। इससे मां और बच्चे के स्वास्थ्य की जानकारी मिलती है। साथ ही कोई कंप्लीकेशन ना हो इसकी जानकारी भी चिकित्सक को मिल जाती है। यदि कोई कंप्लीकेशन होती भी है तो चिकित्सक समय रहते उसका इलाज कर बच्चे और मां को किसी भी परेशानी से बचाया जा सकता है। आइये जानते हैं कि गर्भधारण के दौरान डिलिवरी तक कौन-कौन सी चिकित्सा जांच की जाती हैं

सीबीसी यानी कम्पलीट ब्लड काउंट टेस्ट
डॉक्टर आपका सीबीसी टेस्ट आपके गर्भवती होने के बाद करेगा। इससे आपके रक्त में लाल और सफेद कोशिकाओ का पता लगाया जाता है । इसके साथ ही हीमोग्लोबिन, हेमैटक्रीट और प्लेटलेट्स कणों को भी काउंट किया जाता है।

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हीमोग्लोबिन रक्त में मौजूद प्रोटीन होता है जो कि सेल्स को ऑक्सीजन देता है और हेमैटक्रीट शरीर में लाल रक्त कणों को जांचने का माप है। दोनों में से किसी के भी कम होने पर एनीमिया कहा जाता है। प्लेटलेट्स रक्त में थक्का जमने में सहायता करती हैं। महिला नार्मल डिलिवरी के दौरान तकरीबन आधा लीटर रक्त खो देती है। ऐसे में रक्त की कमी होने पर बच्चे और मां दोनों के लिए स्थिति खतरनाक हो सकती है।

आरएच फैक्टर टेस्ट
आरएच फैक्टर टेस्ट में लाल रक्त कणों के सरफेस में प्रोटीन की मात्रा देखने को किया जाता है। अगर प्रोटीन होता है तो इसे आरएच पॉजिटिव कहा जाता है अन्यथा नेगेटिव। यह टेस्ट लगभग 85 प्रतिशत महिलाओं में पॉजिटिव ही आता है।

यूरिन टेस्ट
डॉक्टर यूरिन टेस्ट से ही गर्भवती महिला के स्वास्थ्य की सही जानकारी लगा पाते हैं। इसमें मुख्यत शुगर की जांच की जाती है। इसके साथ ही किडनी के इन्फेक्शन का पता लगाने के लिए यूरिन में प्रोटीन की मात्रा, जांच की जाती है। इस टेस्ट के माध्यम से बैक्टीरिया की जांच की जाती है जिससे यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन का पता चल पता  है। केटोन्स की भी जांच होती है जिससे यह पता लगता  है कि शरीर कार्बोहाइड्रेट की जगह वसा का  इस्तेमाल ऊर्जा के लिए तो नहीं कर रहा है।

रक्तचाप की जांच
गर्भवती महिला के रक्तचाप की जांच की जाती है ताकि रक्तचाप ज्यादा या कम दोनों ही होने की स्तिथी में महिला को किसी भी प्रकार की हानि से बचाया जा सके।

भ्रूण का अल्ट्रासाउंड
भ्रूण के शारीरिक विकास को देखने के लिए समय समय पर अल्ट्रासाउंड किया जाता है। इसमें प्लेसेंटा की स्थिति और बच्चे के शरीर का हर माप देखा जाता है। बच्चे की मूवमेंट और अन्य क्रियाओं का भी पता अल्ट्रासाउंड से ही चलता है।

मल्टीपल मार्कर स्क्रीनिंग
यह दो तरह का होता है। ट्रिपल स्क्रीन टेस्ट और क्वाड स्क्रीन टेस्ट। यह आहार नाल न्यूरल टयूब में किसी भी तरह के डिफेक्ट को देखने के लिए किया जाता है।

भ्रूण की हृदय गति मापना
हर महीने भ्रूण की हृदय गति में बदलाव आता है। जन्म के समय भी यह बदल जाती है। डॉक्टर समय-समय पर जांच कर यह चेक करते हैं की हार्ट बीट सामान्य है या नहीं। यदि ह्रदय गति कम आये तो माना जाता है कि बच्चे को ऑक्सीजन कम मिल रही है।

 

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