सत्संग व भक्ति ही भगवान को वश में करने का साधन : पंडित मेहता

रायपुर

लव फॉर ह्मयुमैनिटी नींव संस्था द्वारा मैक कॉलेज में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा विश्रांति के दिन कथावाचक पंडित विजय शंकर मेहता ने समर्पण सूत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि भगवान में पूर्ण समर्पण सत्संग व भक्ति के बिना भगवान को वश में नहीं किया जा सकता, जीवन में समर्पण का होना नितान्त आवश्यक है, भगवान के प्रति समर्पण जितना आवश्यक है उतना ही परिवार के प्रति भी समर्पण का भाव होना जरुरी है। जीवन के इस सफर में सुख-दुख, धूप और छांव की तरह है और इसे भगवान का प्रसाद मानकर ग्रहण करना चाहिए न कि दुख आने पर किसी से शिकायत। भगवान पर पूरा भरोसा और उनके प्रति समर्पण, संसार, परिवार, समाज और मित्रों के प्रति होना चाहिए। समर्पण में किसी भी प्रकार का सवाल या कामना की भावना नहीं होनी चाहिए, भगवान चाहे जैसा रखें हमें उसी में खुश रहने की आदत डालनी चाहिए, जीवन की नाव भगवान ही चलाते है, उन्हें मालूम है कब जीव की नाव को मझधार में लेकर जाने है और कब उसे पार लगाना है।

उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और उद्धव प्रसंग पर बताया कि भगवान ने उद्धव को जो गूढ़ रहस्य बताए वह संसार के जीवों के लिए है, भगवान न योग से, न साधना से, न पूजा से, न त्याग से, न दान से, किसी से वश में नहीं आते है भगवान वश में आते है तो वह है सत्संग और भक्ति। जिसने भगवान का सत्संग किया है जो भगवान की भक्ति में लीन हो गया है भगवान का वह सबसे प्रति भक्त होता है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि मनुष्य अपने सारे कामों को संसार को छोड़ दें, संसार में रहते हुए उसके ध्यान में केवल भगवान होना चाहिए न कि संसार की विषय-वस्तुएं। भगवान को सबसे प्रति उनकी भक्ति लगती है और भक्ति के लिए ध्यान लगाना आवश्यक है, ध्यान पवित्र और एकांत में होना चाहिए। पवित्रता से तात्पर्य यह है कि जब ध्यान लगाएं तो आत्मा पूरी तरह से पवित्र हो, उसमें किसी भी प्रकार का संशय, कामनाएं या अन्य कोई विचार हो, एकांत में ध्यान लगाने से चित शांत रहता है। आज के इस दौर में लोग अकेला महसूस करते है, अकेलेपन में ध्यान नहीं लग सकता, अकेलापन साधने के लिए मनुष्य स्थानों की तलाश करता है और कुछ समय के लिए आनंद प्राप्त कर लेता है। एकांत में ध्यान लगाने से अनंद और बाहर दोनों पवित्र रहते है और उसे शांति की प्राप्ति होती है।

पंडित विजय शंकर मेहता ने कहा कि आज के  दौर की जो सबसे बड़ी समस्या है वह है समय का अभाव और खान-पान। मनुष्य के पास न तो समय है औैर न ही उसका खान-पान सही है, इसी का प्रभाव उसके आचरण पर भी पड़ता है। खान-पान में शुद्धता और पवित्रता न होने के कारण बच्चों में वह संस्कार पल्लवित नहीं हो पाते जो होने चाहिए। खान-पान में यदि माँ के हाथों का स्पर्श हो जाए तो वह शुद्ध हो जाता है लेकिन वैसी पवित्रता होनी चाहिए। आने वाले समय में कथाएं भी हो पाएंगी या नहीं इसमें भी संदेह है क्योंकि आज की युवा पीढ़ी में कथा के प्रति कोई लगाव नहीं है और न ही उनके पास इतना समय है कि वह सात दिनों तक श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कर सकें। आजकल कथाएं भी नैनो हो गई।
कथा विश्रांति के दिन सुबह 8.30 बजे से कथा स्थल पर यज्ञ की पूर्णांहूति की गई जिसमें यजमान के साथ संस्था के सभी सदस्यगण परिवार सहित जहां उपस्थित थे वहीं पड़ी संख्या में श्रद्धालूगण इस पूर्णांहूति में शामिल है।