नई भूमिका निभाने के लिए तैयार है भारत, फ्रांस यात्रा पर बोले PM मोदी; पढ़ें पूरा इंटरव्यू

नई दिल्ली

नया उभरता भारत दुनिया में विकसित और विकासशील देशों के बीच पुल बनने के लिए तैयार है। अपनी फ्रांस यात्रा के ठीक पहले एक विदेशी मीडिया संस्थान को दिए गए विस्तृत साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देते हुए कहा है कि भारत पश्चिमी दुनिया और दक्षिणी विश्व यानी ग्लोबल साउथ को जोड़ने वाले एक पुल की भूमिका निभाएगा। लेज ईको से दोटूक बातचीत में उन्होंने सवाल उठाया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पूरी दुनिया की ओर से बोलने का दावा कैसे कर सकती है, जब दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश और सबसे बड़ा लोकतंत्र इसका स्थाई सदस्य नहीं है। पेश हैं साक्षात्कार के मुख्य अंश –

सामरिक सहयोग की 25वीं जयंती
प्रधानमंत्री ने साक्षात्कार में कहा कि सबसे पहले तो मैं भारत की 1.4 अरब जनता की ओर से फ्रांस को और निजी तौर पर राष्ट्रपति मैक्रॉन को धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने 14 जुलाई के राष्ट्रीय दिवस पर मुझे गेस्ट ऑफ ऑनर बनाया। हमारे सामरिक रिश्तों की 25वीं जयंती होने के कारण यह खास मौका भी है। हमारे ये रिश्ते अब निर्णायक क्षण में हैं। ये मजबूत हैं, इनमें परस्पर विश्वास है और निरंतरता भी है। हमारा जैसा परस्पर विश्वास है, वह और कहीं नहीं दिखाई देता है। इसकी जड़ें हमारे समान मूल्यों और नजरिये में हैं।।

युद्ध खत्म करने की कोशिश
प्रधानमंत्री ने कहा कि मैंने पुतिन और जेलेंस्की से कई बार बात की है। मैं हिरोशिमा में राष्ट्रपति जेलेंस्की से मिला था और फिर मैंने राष्ट्रपति पुतिन से भी बात की थी। भारत का नजरिया लगातार साफ और पारदर्शी बना हुआ है। हमने दोनों ही पक्षों से कहा है कि वे अपने मसलों को बातचीत और राजनय से सुलझाएं। मैंने उनसे यह भी कहा है कि अगर वे युद्ध खत्म करने के लिए ईमानदार कोशिश करेंगे, भारत सहयोग को तैयार है।

हम किसी के खिलाफ नहीं
भारत और फ्रांस की सामरिक साझेदारी काफी व्यापक है, इसमें राजनीतिक, रक्षा संबंधी, आर्थिक, मानव विकास केंद्रित और स्थायित्व संबंधी सभी तरह का सहयोग शामिल है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र समेत हमारा हर तरह का सहयोग न तो किसी देश के खिलाफ है और न ही किसी की कीमत पर है।

सबकी संप्रभुता का सम्मान हो
प्रधानमंत्री ने जवाब दिया कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हमारी दिलचस्पी काफी व्यापक है और हमारी सक्रियता काफी गहरी है। हम जिस भविष्य को बनाना चाहते हैं, उसके लिए शांति जरूरी है, पर इसका कोई आश्वासन नहीं है। भारत हमेशा ही मतभेदों को शांति से, बातचीत और राजनय के जरिये सुलझाना चाहता है। साथ ही, हम चाहते हैं कि सबकी संप्रभुता का सम्मान हो और एक अंतरराष्ट्रीय कानून आधारित विश्व व्यवस्था बने। हम मानते हैं कि इसी के जरिए हम इस क्षेत्र में और पूरी दुनिया में शांति व स्थिरता कायम कर सकते हैं।

 भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है। इस परिवर्तन ने विश्व परिदृश्य में भारत की हैसियत को कैसे बदला है?

भारत हजारों साल पुरानी एक समृद्ध सभ्यता है। आज भारत दुनिया का सबसे नौजवान देश भी है। भारत की सबसे बड़ी पूंजी उसके नौजवान हैं। इस समय जब दुनिया के बहुत सारे देश बूढ़े हो रहे हैं और उनकी आबादी कम हो रही है। भारत का नौजवान और कुशल कार्यबल कई दशकों तक दुनिया के लिए एक संपत्ति रहेगा। आज भी भारतवंशी और प्रवासी जहां कहीं भी बसे हैं, अपने अपनाए गए देश की समृद्धि में योगदान दे रहे हैं। हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र तो हैं ही, साथ ही, हमारी सामाजिक और आर्थिक विविधता भी अनूठी है, हमारी कामयाबी दुनिया को यह दिखाएगी कि लोकतंत्र परिणाम दे सकता है। इसके साथ ही, यह उम्मीद भी स्वाभाविक है कि अंतराष्ट्रीय व्यवस्था और संस्थाओं में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को उसका उचित स्थान मिलेगा।

● जब आप यह कहते हैं कि भारत दुनिया में उचित स्थान हासिल कर रहा है, तो इसका क्या अर्थ है? क्या आप इसकी व्याख्या करेंगे?

इसके बजाय मैं यह कहूंगा कि भारत फिर से अपना उचित स्थान हासिल कर रहा है। प्राचीन काल से दुनिया की आर्थिक प्रगति, तकनीकी उन्नति और मानव विकास के मामलों में भारत अग्रणी मोर्चे पर रहा है। आज दुनिया के सामने आर्थिक मंदी, खाद्य सुरक्षा, महंगाई, सामाजिक तनाव जैसी बहुत-सी चुनौतियां हैं। ऐसे में, हमारे देश के लोगों का जो आत्मविश्वास बढ़ा है और दुनिया में उचित स्थान पाने के लिए जो बेचैनी है, वह भविष्य को लेकर बड़ी उम्मीद बंधाती है। हमारी आबादी का स्वरूप, लोकतंत्र में हमारी गहरी जड़ें और हमारी सभ्यता की चेतना, ये सब हमें भविष्य की ओर बढ़ने का रास्ता दिखाएंगी। कमजोर लोेगों की उम्मीदों को आवाज देकर वैश्विक शांति और समृद्धि कायम करने की चुनौतियों का मुकाबला करने और ज्यादा सामंजस्य वाले विश्व का निर्माण करने की जिम्मेदारियों को हम समझते हैं।

बहुपक्षीय सक्रियता में भारत का गहरा विश्वास है। अंतरराष्ट्रीय सोलर एलायंस, एक सूर्य-एक विश्व-एक ग्रिड की पहल, आपदा रोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठजोड़, भारत की हिंद-प्रशांत सागर पहल वगैरह इसके उदाहरण हैं। या इसी तरह सौ से ज्यादा देशों को भारत ने अपनी कोविड वैक्सीन भेजी और अपने ओपेन सोर्स डिजिटल प्लेटफार्म कोविन को दुनिया के साथ साझा किया। जैसे-जैसे भारत और विकास करेगा, दुनिया की बेहतरी में भारत का योगदान और बढ़ेगा, दूसरों के खिलाफ दावेदारी या विश्व व्यवस्था को चुनौती देने के बजाय हमारी क्षमताएं और हमारे संसाधन मानवता को और अच्छा बनाने में लगेंगे।

● भारत की सॉफ्ट पावर के स्तंभ क्या हैं?

जिसे भारत की सॉफ्ट पावर कहा जा सकता है, उसका आधार भारत की सभ्यता के संस्कार और हमारी विरासत है और हमारे पास यह भरपूर है। हमने कभी युद्ध और शोषण का निर्यात नहीं किया, बल्कि योग, आयुर्वेद, अध्यात्म, विज्ञान, गणित और खगोलशास्त्र को पूरी दुनिया में भेजा। हम हमेशा विश्व शांति और प्रगति में योगदान देते रहे। हम मानते हैं कि भले ही हमने प्रगति की और आधुनिक राष्ट्र बन गए, पर हमें अपने अतीत से प्रेरणा लेनी चाहिए। भारत की सभ्यता और संस्कृति को लेकर आज पूरी दुनिया की दिलचस्पी फिर जाग रही है। योग घर-घर पहुंच चुका है। आयुर्वेद की स्वीकार्यता बढ़ी है। भारत के सिनेमा, संगीत, नृत्य और भोजन की पूछ आज पूरी दुनिया में होती है। शांति, खुलेपन, सद्भाव और सहजीवन के हमारे मूल्य, हमारा जीवंत लोकतंत्र, हमारी संस्कृति और दर्शन की समृद्धि, शांतिपूर्ण और निष्पक्ष विश्व के लिए हमारी लगातार कोशिशें, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और शांति के लिए हमारी प्रतिबद्धता ये सब हमारी सॉफ्ट पावर के स्तंभ हैं।

● क्या आप मानते हैं कि भारत कुदरती तौर पर दक्षिणी विश्व का नेता है?

मैं मानता हूं कि विश्व नेता एक ज्यादा भारी शब्द है और भारत को न तो कुछ मानकर चलना चाहिए और न ही किसी पद को हथियाना चाहिए। वास्तव में मैं यह मानता हूं कि हमें एकजुट होकर सामूहिक ताकत से सामूहिक नेतृत्व की कोशिश करनी चाहिए, ताकि इसकी आवाज ताकतवर हो और पूरा समुदाय अपना नेतृत्व कर सके। सामूहिक नेतृत्व तैयार करने के लिए भारत को नेता पद के लिए नहीं सोचना चाहिए और हम ऐसा सोचते भी नहीं हैं। यह भी सच है कि दक्षिणी विश्व को उसके अधिकार लंबे समय से नहीं मिले हैं। जिसकी वजह से इसके सदस्यों में गुस्सा है और वे इसे लेकर कुछ करना चाहते हैं, लेकिन जब फैसले का वक्त आता है, तो उन्हें इसका मौका नहीं मिलता और न अपने लिए कोई आवाज मिलती है। मैं मानता हूं कि अगर हम लोकतंत्र की सही भावना के अनुसार दक्षिणी विश्व का सम्मान करें और उसे समान अधिकार दें, तो दुनिया एक ज्यादा ताकतवर और मजबूत समुदाय में बदल जाएगी। इससे विश्व व्यवस्था में एक नया भरोसा भी कायम होगा।

दूसरे, यह देखिए कि दक्षिणी विश्व में भारत अपने आप को कैसे रखता है। मैं भारत को उस मजबूत कंधे की तरह देखता हूं, जिसके सहारे दक्षिणी विश्व ऊंची छलांग लगा सकता है। भारत दक्षिणी विश्व को उत्तरी विश्व से जोड़ सकता है। अगर उत्तर और दक्षिण के बीच का पुल मजबूत होगा, तो दक्षिणी विश्व मजबूत होगा।

● पिछले कुछ साल में भारत और अमेरिका के रिश्ते काफी बढ़े हैं। यह क्यों हो रहा है और भारत का इसके पीछे क्या तर्क है?

यह सही है कि इस सदी की शुरुआत से ही रिश्तों में सुधार हुआ है। पिछले नौ साल में रिश्ते नई ऊंचाई पर पहुंचे हैं। दोनों ही देशों की सरकारें हों, संसद हो, उद्योग हों, अकादमिक जगत के लोग हों या फिर आम लोग हों, सभी में इसे व्यापक समर्थन मिला है। पिछले नौ साल में अमेरिका का कोई भी नेतृत्व हो, सभी के साथ मेरा तालमेल अच्छा रहा। अभी जून में जब मैंने अमेरिका की राजकीय यात्रा की, तो राष्ट्रपति जो बाइडन और मैं इस बात पर सहमत थे कि दुनिया के दो बड़े लोकतंत्र के सबंध इस सदी में दोस्ती का उदाहरण बन सकते हैं।

भरोसा, परस्पर विश्वास और रिश्तों में यकीन इसके मुख्य आधार हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र मुक्त हो, खुला हो, समावेशी और संतुलित हो, यह हम दोनों का ही साझा लक्ष्य है। ऐसा बहुत कुछ है, जो दोनों देशों को जोड़ता है।

● आपने कई बार कहा है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में दक्षिणी विश्व की नहीं सुनी जाती। दक्षिण की उपस्थिति बढ़ाने की आपकी क्या योजना है?

इस साल जनवरी में जब जी-20 की हमारी अध्यक्षता शुरू हुई, तो मैंने दक्षिणी विश्व का एक सम्मेलन आयोजित किया। 125 देशों ने भाग लिया। वहां एकमत से यह बात कही गई कि भारत को दक्षिणी विश्व के मुद्दे को जोरदार ढंग से उठाना चाहिए। हमने एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य को दक्षिणी विश्व का सबसे बड़ा लक्ष्य बनाया। हमने जी-20 की बातचीत और फैसलों में दक्षिणी विश्व को केंद्र में रखने की कोशिश की। मैंने अफ्रीकी संघ को इसकी स्थाई सदस्यता देने का भी प्रस्ताव रखा।