बीजापुर
कलेक्टर कार्यालय से महज 500 मीटर की दूरी पर डारापारा आंगनबाड़ी केंद्र के समीप बने सामुदायिक भवन में सिलाई कर कपड़े रखे गए थे, जिसे भवन से बाहर फेंक दिया गया, ताकि उस भवन पर राशन दुकान संचालित हो सके। शिक्षा विभाग ने लाखों रुपए के स्कूली बच्चों का गणवेश कैसे कचरे के ढेर में तब्दील हो गया, यह जांच का विषय है।
शासकीय स्कूलों में पढने वाले आदिवासी बच्चों के लिए आवासीय व्यवस्था के साथ-साथ कपड़े, जूते, पुस्तक और खाने पीने की समुचित व्यवस्था प्रशासन के माध्यम से की जाती है। आदिवासी बच्चों के लिए प्रति वर्ष गणवेश एवं अन्य सामग्री हेतु करोड़ों रुपए जिला प्रशासन को आबंटित की जाती है, जिसमें जिले भर के कन्या आश्रम और बालक आश्रम के बच्चों को गणवेश की सिलाई हेतु थान कपड़ा क्रय कर महिला स्व सहायता समूह को सौंपा जाता है। सामुदायिक भवन में सिलाई कर रखे गये कपड़े को सुरक्षित रखे जाने की सुचित व्यवस्था नही कर लापरवाही के चलते लाखों रुपए के स्कूली बच्चों का गणवेश अब कचरे का ढेर में परिवर्तित हो गया, जिसे बाहर फेंक दिया गया। उल्लेखनिय है कि लगभग एक वर्ष पूर्व आश्रम अधीक्षओं से स्कूली बच्चों के गणवेश क्रय करने के लिए आश्रमों के एक माह का लगभग 50 हजार रूपए शिष्यवृत्ति की रकम ली गई थी।